हिन्दी

पाकिस्तानी सेना ने इमरान ख़ान के समर्थन में हो रहे विरोध प्रदर्शन पर अमेरिका की शह में की खुलेआम जनसंहारक गोलीबारी

यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के मूल का जो मूलतः Pakistani army opens fire in brazen, US-backed massacre of pro-Imran Khan protest 29 नवंबर 2024 को प्रकाशित हुआ थाI

जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के हज़ारों समर्थक, इसी हफ़्ते पूरे पाकिस्तान के विभिन्न जगहों से इस्लामाबाद में इकट्ठा हुए थे। उनका सामना दंगा नियंत्रक पुलिस की भारी तैनाती से हुआ था, जिन्हें पाकिस्तानी सेना से गोली मार देने के आदेश प्राप्त थे। यह वही सेना है जिसने इस्लामी-लोकप्रिय प्रधानमंत्री को एक साल से अधिक समय से जेल में बंद कर रखा है।

जब ये समर्थक इस्लामाबाद पहुंचे तो उन्हें पूरी राजधानी में लॉकडाउन जैसी स्थिति मिली, स्कूल और दुकानें बंद थीं, शहर के अधिकांश हिस्से में इंटरनेट काट दिया गया था और तैनात की गई 20,000 दंगा नियंत्रक पुलिस ने सभी बड़ी सड़कों पर कंटेनर लगाकर उन्हें ब्लॉक कर रखा था। जब प्रदर्शनकारी राजधानी के सरकारी कार्यालयों वाले इलाक़े में स्थित डी चौक (डेमोक्रेसी चौक) पर पहुंचने की कोशिश की तो हिंसक झड़पें शुरू हो गईं और दंगा नियंत्रक पुलिस ने रबर की गोलियां और आंसू गैस के गोले दागे।

हालांकि मंगलवार की रात एक जनसंहार जारी था क्योंकि पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने प्रदर्शनकारियों की भीड़ पर गोली चलाना शुरू कर दिया था। पाकिस्तानी सरकार द्वारा इंटरनेट पर पाबंदी लगाए जाने के बावजूद, सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में दिखता है कि मशीन गन की तड़तड़ाहट के बीच प्रदर्शनकारी सड़कों पर भाग रहे हैं, उनके पीछे जली हुई गाड़ियां हैं और रास्ते खून से लथपथ हैं।

Loading Tweet ...
Tweet not loading? See it directly on Twitter

एक वायरल वीडियो में दिखा कि एक ऊंचे शिपिंग कंटेनर से एक प्रदर्शनकारी को मिलिटरी पुलिस नीचे धकेल रही थी, कथित तौर पर उसकी मौत हो गई।

Loading Tweet ...
Tweet not loading? See it directly on Twitter

पाकिस्तानी प्रशासन ने जनसंहार होने की बात का बेशर्मी से इनकार किया और इस बात की उम्मीद की कि बड़े पैमाने पर की गई इंटरनेट पाबंदी से इस जनसंहार की ख़बर लोगों को नहीं लग पाएगी। इस्लामाबाद पुलिस प्रमुख अली रिज़्वी ने इस बात से इनकार किया कि मंगलवार को कोई गोलीबारी की गई थी लेकिन 600 लोगों की गिरफ़्तारी की उन्होंने पुष्टि की। मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि अभी तक 1000 लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है।

जब पाकिस्तान के गृह मंत्री मोहसिन नक़वी से पूछा गया कि क्या प्रदर्शन पर गोलीबारी की गई थी, उन्होंने इनकार वाला एक झूठा बयान जारी कर दिया। इसमें कहा गया, 'अभी तक, कोई मौत दर्ज नहीं की गई है और इस तरह की किसी भी घटना से संबंधित सोशल मीडिया पर जो दावे किए जा रहे हैं, वे आधारहीन और अपुष्ट हैं।'

ऐसा इसलिए है क्योंकि पाकिस्तानी सेना ने जो जनसंहार किया था, उसकी ख़बरों को वो दबा रही थी और उन ख़बरों की पुष्टि को असंभव बनाने की कोशिश कर थी, जो सोशल मीडिया में घूम रही थीं। हालांकि फिलहाल, यह सेंसरशिप धाराशाई हो रहा है क्योंकि सोशल मीडिया पर ऐसे साक्ष्यों की बाढ़ आ गई है जिससे लग रहा है कि सेना और नक़वी का कार्यालय दर्जनों या सैकड़ों लोगों की हत्या को दबाने की कोशिश में है।

स्वास्थ्य कर्मियों ने इस बात की पुष्टि की है कि पाकिस्तानी अधिकारी मेडिकल रिकॉर्ड्स पर सेंसर लगा रहे हैं। बुधवार को इस्लामाबाद के एक डॉक्टर ने गार्डियन को बताया, 'कम से कम सात लोग मारे गए हैं और अस्पताल में चार लोगों की हालत गंभीर है। आठ अन्य लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जिन्हें गोली लगी है।' डॉक्टर ने कहा, 'प्रशासन ने मारे गए और घायलों के सभी रिकॉर्ड को ज़ब्त कर लिया है। हमें बात करने की इजाज़त नहीं है। रिकॉर्ड्स को छिपाने के लिए सरकार के वरिष्ठ अधिकारी अस्पताल का दौरा कर रहे हैं।'

Loading Tweet ...
Tweet not loading? See it directly on Twitter

इमरान ख़ान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई, इंसाफ़ के लिए पाकिस्तान का आंदोलन) पार्टी ने छह से 200 तक लोगों के मरने का अनुमान लगाया है।

रिपोर्टों से पता चलता है कि अधिकांश पीड़ितों की पृष्ठभूमि मज़दूर वर्ग की है। पाकिस्तान के उदारवादी अख़बार डॉन ने लिखा, 'पीटीआई नेता सलमान अकरम राजा ने एक व्यक्ति का नाम लिया- मुबीन औरंगज़ेब और बताया कि उन्हें एटबाबाद, यूसी फालोकट स्थित उनके गांव में दफ़नाया गया। एक दूसरे पीड़ित की पहचान क़ादिर के रूप में की गई, जो सात बच्चों के पिता थे और लाहौर में दिहाड़ी मज़दूर थे। उन्हें यूसी शेरवान में सोबन गली गांव में दफ़नाया गया।'

बुधवार को अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने एक बयान जारी कर इस जनसंहार में अमेरिकी भूमिका से इनकार किया। उन्होंने पाकिस्तानी सेना के बर्ताव को क़ानून व्यवस्था बनाए रखने की कार्रवाई बताया और कहा, 'हम प्रदर्शनकारियों से शांति पूर्वक प्रदर्शन करने और हिंसा से दूर रहने की अपील करते हैं और दूसरी तरफ़, हम पाकिस्तानी प्रशासन से मानवाधिकार और बुनियादी स्वतंत्रता का सम्मान करने की अपील करते हैं और क़ानून व्यवस्था को बनाए रखने की कोशिश के दौरान वो पाकिस्तान के क़ानून और संविधान का सम्मान सुनिश्चित करे।'

यह जनसंहार पाकिस्तानी सेना ने कराया था, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम पर वॉशिंगटन और इसके यूरोपीय सहयोगियों की छाप है। रूस और चीन के ख़िलाफ़ अमेरिकी-नेटो की जंग की योजनाओं में साथ न देने के चलते एक साम्राज्यवादी बदले की कार्रवाई के तहत इमरान ख़ान को जेल में डाल दिया गया था।

ख़ान एक बुर्जुआ राजनेता हैं जिन्होंने सत्ता में रहते हुए, मज़दूर वर्ग पर आईएमएफ़ की खर्च कटौती का कार्यक्रम थोपा था। हालांकि, उन्होंने रूसी गैस और तेल ख़रीदने की कोशिश की और बीजिंग की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के मार्फ़त पड़ोसी चीन से व्यावसायिक रिश्ते विकसित करने की कोशिश की थी। रूस-यूक्रेन की जंग शुरू होने के कुछ दिनों बाद ही जब ख़ान ने मॉस्को का दौरा किया, और ऐसा संदेश दिया कि पाकिस्तानी पश्चिम के 'ग़ुलाम' नहीं हैं, तो साम्राज्यवादी ताक़तों ने उन्हें सत्ता से बेदख़ल कर दिया।

मुश्किल से एक महीने बाद ही, 10 अप्रैल 2022 को एक अविश्वास मत लाकर उन्हें सत्ता से हटा दिया गया। अगस्त 2023 में अनाम पाकिस्तानी अधिकारियों ने एक राजनयिक संदेश या रिकॉर्डिंग को लीक कर दिया, जिससे पता चला कि अमेरिकी विदेश विभाग के अधिकारी डोनाल्ड लू ने वॉशिंगटन में पाकिस्तानी दूतावास के अधाकिरियों को धमकी दी थी कि ख़ान को सत्ता से हटाए जाने को बाइडन प्रशासन किसी समझौते से परे मानता था।

इस संदेश में लू को कोट करते हुए कहा गया है, 'यहां और यूरोप में लोग इस बात को लेकर काफ़ी चिंतित हैं कि पाकिस्तान इस तरह का आक्रामक न्यूट्रल रुख़ (यूक्रेन पर) क्यों अख़्तियार कर रहा है, भले ही ऐसा रुख़ लिए जाने की गुंजाइश हो। यह हमें न्यूट्रल रुख़ नहीं लगता।' लू ने कहा था कि अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का मानना है कि 'यह बिल्कुल स्पष्ट है कि यह प्रधानमंत्री की नीति थी।'

लू ने संकेत दिया था कि अगर ख़ान को सत्ता से बाहर का रास्ता नहीं दिखाया गया तो वॉशिंगटन पाकिस्तान को माफ़ नहीं करेगा, 'मुझे लगता है कि अगर प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव कामयाब रहता है तो वॉशिंगटन में सबकुछ माफ़ कर दिया जाएगा क्योंकि रूसी दौरे को प्रधानमंत्री के फ़ैसले के तौर पर देखा जा रहा है। अन्यथा, मुझे लगता है कि आगे का समय मुश्किल भरा होगा।'

अंत में लू ने ज़ोर दिया था कि ख़ान के मॉस्को दौरे ने अमेरिका-पाकिस्तान के रिश्तों को गंभीर नुकसान पहुंचाया है और ख़ान के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव एक प्रमुख मुद्दा हैः 'मैं कहना चाहूंगा कि हमारे नज़रिए से इसने पहले ही रिश्ते को काफ़ी धक्का पहुंचा दिया है...कुछ दिनों तक हम इंतज़ार करेंगे और देखेंगे कि राजनीतिक हालात बदलते हैं या नहीं, जिसका मतलब होगा कि इस मुद्दे को लेकर हमारे बीच कोई बड़ी असहमति नहीं होगी। अन्यथा, हमें इस मुद्दे पर सीधे भिड़ना पड़ेगा और तय करना होगा कि इससे कैसे निपटें।'

इस गोपनीय संदेश की ख़बरों को लेकर अमेरिकी विदेश विभाग ने आठ महीने तक चुप्पी साधे रखी। आख़िरकार, इसी साल मार्च में, मिलर ने एक संक्षिप्त बयान जारी किया और इस बात का बेतुके तरीक़े से खंडन किया कि संदेश में यह कहीं नहीं दिखा कि ख़ान की बेदख़ली को लेकर अमेरिका ने कोई दबाव डाला था, 'कथित संदेश में ऐसा कुछ नहीं दिखता है कि अमेरिका इस बारे में कोई पक्ष ले रहा है कि पाकिस्तान का नेता किसे होने चाहिए।'

ख़ान के जाने के बाद, पाकिस्तान ने टैक्स और ईंधन के दाम बढ़ाने वाले आईएमएफ़ के एक नए विनाशकारी खर्च कटौती कार्यक्रम को स्वीकार किया, क्योंकि नई पाकिस्तानी सरकार ने रूसी ईंधन खरीद को ख़त्म कर दिया था। इसने पाकिस्तान में मज़दूरों और दबी कुचली ग्रामीण जनता के जीने के हालात को और तबाह कर दिया। ग़रीबी दर दोगुना होकर 40 प्रतिशत हो गई। पिछले महीने, विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया कि ग़रीबी की यह स्थिति कम से कम पूरे 2026 तक जारी रहेगी।

पाकिस्तान के आर्थिक संकट, मई 2023 में ख़ान की गिरफ़्तारी और फ़रवरी 2024 में हुए चुनावों में पाकिस्तानी मुस्लिम लीग (नवाज़) सरकार के पक्ष में जमकर हुई धांधली ने देश में उठे लोकप्रिय विरोध में घी का काम किया है।

ख़ान और पीटीआई, पाकिस्तानी बुर्जुआजी और राजनीतिक सत्ता तंत्र के एक हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं और इस सामूहिक गुस्से को भुनाने के लिए बेचैन हैं। उन्होंने बार बार प्रदर्शनों का आह्वान किया और राष्ट्रीय 'एकता' के नाम पर उन्हें बार बार स्थगित किया और साम्राज्यवाद और पाकिस्तानी बुर्जुआजी में इसके एजेंटों के ख़िलाफ़ आंदोलन को मज़दूर वर्ग में फैलने से रोका।

सत्ता से अपने हटाए जाने के ख़िलाफ़ उन्होंने पहली बार मई 2022 में प्रदर्शन बुलाया था। इसे नाम दिया था 'आज़ादी मार्च'। मिलिटरी पुलिस के ख़िलाफ़ वर्करों के नफ़रत की चेतावनी देते हुए उन्होंने यह मार्च रद्द कर दिया। उन्होंने कहा, 'पुलिस के ख़िलाफ़ नफ़रत पहले ही बहुत चरम पर पहुंच गई थी, मुझे देख कर (डी चौक पर) मेरे वर्करों की भावनाएं और भड़क जातीं।' उन्होंने कहा, 'मुझे पूरा विश्वास था कि गोलियां चलेंगी। हमारी तरफ़ के लोग भी तैयार थे क्योंकि उनमें से कुछ के पास पिस्तौलें थीं। इससे पुलिस और सेना के ख़िलाफ़ नफ़रत और बढ़ जाती और देश के अंदर ही विभाजन की स्थिति पैदा हो जाती।'

इस हफ़्ते पीटीआई ने एक बार फिर प्रदर्शनों को वापस ले लिया ताकि जनसंहार के बाद उपजा लोगों का ग़ुस्सा शांत हो जाए। पार्टी ने ट्वीट किया, 'सरकार की क्रूरता और राजधानी को निहत्थे नागरिकों के लिए बूचड़खाने में बदलने की सरकार की योजना को देखते हुए, (हम) कुछ समय के लिए शांतिपूर्ण विरोध को निलंबित करने की घोषणा करते हैं।'

आईएमएफ़ का खर्च कटौती कार्यक्रम, रूस के साथ युद्ध और जानलेवा अमेरिकी परस्त पाकिस्तानी निरंकुशता के ख़िलाफ़ मज़दूर वर्ग के विरोध को, समाजवादी और अंतर्राष्ट्रीयवादी दृष्टिकोण के आधार पर तीखा किया जाना चाहिए। जीवन जीने के हालात को सुधारने और बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकारों को हासिल करने के लिए पाकिस्तानी सैन्य शासन के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए मज़दूर वर्ग में, अमेरिकी-नेटो साम्राज्यवादी युद्ध और वित्तीय पूंजी के फरमान के ख़िलाफ़ और समाजवाद के लिए एक अंतरराष्ट्रीय आंदोलन के निर्माण की ज़रूरत है।

Loading