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डीएमके सरकार के निर्देश पर स्टालिनवादी सीटू ने सैमसंग इंडिया वर्करों की जुझारू हड़ताल तोड़ दी

यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के मूल लेख का है Stalinist CITU shuts down Samsung India workers’ militant strike on orders of DMK government जो मूलतः21 अक्टूबर 2024 को प्रकाशित हुआ थाI

तमिलनाडु में घरेलू उपकरण बनाने वाली कंपनी सैमसंग इंडिया के 1400 मज़दूरों की 37 दिनों तक चली हड़ताल को, पिछले हफ़्ते स्टालिनवादियों की अगुवाई वाली सेंटर ऑफ़ ट्रेड यूनियन्स (सीटू) ने ख़त्म करा दिया। यह डीएमके सरकार के निर्देश पर हुआ, जोकि खुद वैश्विक पूंजी और भारत की अति-दक्षिणपंथी, भाजपा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सरकार के इशारे पर काम कर रही थी।

मज़दूरों की बिना किसी मांग के और रैंक एंड फ़ाइल से बिना चर्चा के सीटू ने हड़ताल समाप्त कर दी। मज़दूरों की मांग थी कि सीटू से संबद्ध सैमसंग इंडिया वर्कर्स यूनियन (एसआईडब्ल्यूयू) को कंपनी और सरकार मान्यता दे।

इसकी बजाय इलेक्ट्रॉनिक और उपकरण निर्माता की ओर से बेकार के वादे के आधार पर मज़दूरों को वापस काम पर भेज दिया गया। सीटू नेताओं के अनुसार, सैमसंग प्रबंधन ने वादा किया है कि 'वो मुख्य मांगों पर मज़दूरों के साथ वार्ता करेगा और मज़दूरों पर बदले की मंशा से कार्रवाई नहीं करेगा।'

सरकारी अधिकारियों की भरपूर शह पर कंपनी ने हर मोड़ पर दिखाया है कि वह ग़रीबी वेतन, काम के लंबे घंटे और काम के बदतर हालात समेत मज़दूरों की हर शिकायत का अड़ियल तरीक़े से विरोध करती है।

सीटू, स्टालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) या सीपीएम की ट्रेड यूनियन फ़ेडरेशन है। भारत की प्रमुख स्टालिनवादी संसदीय पार्टी सीपीएम, राज्य में डीएमके की क़रीबी सहयोगी है और उसे पसंद करती है। साथ ही वो राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस पार्टी की अगुवाई वाले विपक्षी इंडिया गठबंधन की मजबूत समर्थक है।

37 दिनों तक चली हड़ताल के दौरान सैमसंग इंडिया के मज़दूर। पहले अदालत ने उन्हें प्लांट से 500 मीटर के दायरे में जाने से मना किया। उसके बाद पुलिस ने उनके धरनास्थल पर हमला किया और टेंट फाड़ डाले।

इस पूरी हड़ताल के दौरान डीएमके सरकार ने खुद को सैमसंग मैनेजमेंट के लिए काम करने वाली सरकार के रूप में साबित किया है। उसने यूनियन को सरकारी मान्यता मिलने में रोड़ा अटकाया और मज़दूरों पर हमला करने और सामूहिक रूप से गिरफ़्तार करने के लिए बार बार पुलिस का इस्तेमाल किया। 9 और 10 अक्टूबर को यह पूरा घटनाक्रम तब चरम पर पहुंच गया जब पुलिस ने यूनियन के नेताओं के घरों पर छापे मारे, हड़ताल करने वाले मज़दूरों के टेंट में तोड़फोड़ की, जोकि कोर्ट के आदेश पर प्लांट से काफ़ी दूर लगाया गया था। उन्होंने टेंट को फाड़ डाला और घंटों तक सैकड़ों वर्करों को हिरासत में लिए रखा।

डीएमके सरकार के श्रम विभाग और सैमसंग मैनेजमेंट के साथ दो दिन तक चली त्रिपक्षीय वार्ता में शामिल होने के बाद सीटू ने 15 अक्टूबर को एलान किया कि वो एकतरफ़ा हड़ताल को ख़त्म करने जा रही है और मज़दूर 17 अक्टूबर को काम पर वापस लौट जाएंगे।

मुखर व्यवसाय समर्थक डीएमके सकार के सामने पूरी तरह किए गए अपने आत्मसमर्पण को छिपाने और लोकतांत्रिक समहति का एक आडंबर रचने के लिए सीटू के नौकरशाहों ने अगले दिन एसआईडब्ल्यूयू की एक 'जनरल बॉडी मीटिंग' बुलाई। यह मीटिंग कांचीपुरम के एक मैरिज हॉल में आयोजित थी, जो प्लांट से 30 किलोमीटर दूर स्थित है।

इस मीटिंग का छुपा हुआ मकसद था कि हड़ताल ख़त्म करने के निर्णय पर मज़दूरों से मुहर लगवाई जाए। हालांकि जिन 1200 सैमसंग वर्करों ने इस मीटिंग में हिस्सा लिया उनमें से किसी को भी बोलने नहीं दिया गया। यहां तक कि सवाल भी नहीं पूछने दिया गया। इसकी बजाय, उन्हें सीटू अधिकारियों द्वारा लेक्चर पिलाया गया और धमकाया गया। इसके बाद उनसे पहले घोषित हो चुके काम पर लौटने के फैसले पर हाथ उठाकर सहमति देने की बात कही गई।

डीएमके के सामने सीटू के पूरी तरह बिछ जाने को, सीटू प्रेसिडेंट ए सुंदरराजन और एसआईडब्ल्यूयू प्रेसीडेंट ई. मुथुकुमार ने ऐतिहासिक जीत बताया। दिलचस्प है कि मुथुकुमार सीटू कार्यकर्ता हैं और सैमसंग में काम नहीं करते हैं।

मुथुकुमार ने बड़ी कुटिलता से सीटू का आदेश मानने के लिए मज़दूरों की तारीफ़ की कि वे अपने ख़िलाफ़ कोर्ट के आदेशों का पालन करते हैं और पुलिस हिंसा का विरोध नहीं करते। उन्होंने श्रीपेरम्बदूर औद्योगिक क्षेत्र और चेन्नई के व्यापक क्षेत्रों में मज़दूरों को अपने बचाव में संगठित प्रदर्शन करने का आह्वान किया।

मुथुकुमार ने कहा, 'आम तौर पर जहां भी प्रदर्शन होता है, ख़ासकर हड़ताल के मामले में, वहां बड़े पैमाने पर हिंसा और दंगे होते हैं। फिर यह मामला ट्राइब्यूनल और अदालतों में जाता है। लेकिन यह मज़दूर प्रदर्शन बहुत नैतिक तरीक़े से आयोजित किया गया था। दुनिया इस प्रदर्शन को हैरानी से देख रही है।'

इस मीटिंग के बाद जिन वर्करों ने वर्ल्ड सोशलिस्ट वेब साइट से बात की उन्होंने बताया कि सुंदरराजन ने उनसे कहा कि काम पर वापस लौटने के बाद उन्हें उसी तरह मैनेजमेंट के नियम मानने होंगे जैसा वे फ़ैक्ट्री के बाहर देश के क़ानून का पालन करते हैं।

इसके अलावा, वर्करों को बताया गया कि यूनियन का एक ही मक़सद है कि वो मज़दूरों की ओर से इंसाफ़ की मांग करे; जब वे 'ग़लतियां' करते हैं तो उन्हें बचाने का काम यूनियन का नहीं है। यह कहकर सीटू के नौकरशाहों ने संकेत दे दिया कि मैनेजमेंट द्वारा धमकाने की कोशिश और अपनी शक्तियों का बेजा इस्तेमाल करने की सूरत में अगर मज़दूर विरोध करेंगे तो यूनियन बचाव में नहीं उतरेगी।

जख़्म पर नमक छिड़कते हुए सीटू नौकरशाहों ने मीटिंग के अंत में एक दूसरे को मालाएं पहनाईं और जीत के नारे लगाए। मज़दूरों को बरगलाने के उद्देश्य से इसी तरह के दावे सीटू के राष्ट्रीय नेतृत्व, सीपीएम और उनके वाम मोर्चा सहयोगियों द्वारा किए गए।

जबकि वास्तविकता में यह सीटू का पूर्ण आत्मसमर्पण था।

विवाद की शुरुआत में, स्टालिनवादी नौकरशाहों ने स्पष्ट किया था कि अगर कंपनी द्वारा यूनियन को मान्यता और क़ानूनी सर्टिफ़िकेट दे दिया जाता है तो वे वर्करों की अन्य मांगों को टाल देंगे। इसे और स्पष्ट करते हुए सीटू के स्टेट प्रेसिडेंट सुंदरराजन ने 12 अक्टूबर को कहा था कि 'सैमसंग में वेतन बढ़ोत्तरी या काम के हालात में सुधार की मांग को लेकर यूनियन जल्दबाज़ी में नहीं है।' उन्होंने कहा कि वर्कर 'छोटे बच्चे' नहीं हैं।

फिर भी सीटू द्वारा मज़दूरों पर त्रिपक्षीय समझौते को थोपने के बावजूद उस एसआईडब्ल्यू को किसी तरह की मान्यता नहीं मिल सकी, जिसे मज़दूरों ने जून में बनाया था ताकि सैमसंग के ख़िलाफ़ सामूहिक संघर्ष किया जा सके।

समझौते में एसआईडब्ल्यूयू का कोई ज़िक्र नहीं है। ना ही इस बात का ज़िक्र है कि यूनियन को मान्यता देना मज़दूरों का क़ानूनी और संवैधानिक अधिकार है। यहां ये कहना ज़रूरी है कि यह एक ऐसा अधिकार है जिसका पूरे भारत में सरकारें और मालिक वर्ग बार बार उल्लंघन करता है।

यही नहीं, अंत में सीटू और एसआईडब्ल्यूयू ने हड़ताली मज़दूरों के मांग पत्र पर लिखित जवाब मांगा था, जिसे सैमसंग मैनेजमेंट ने बहुत अड़ियल तरीक़े से ख़ारिज कर दिया।

साउथ कोरिया का यह मल्टीनेशनल कार्पोरेशन, एसआईडब्ल्यूयू को मान्यता देने से लगातार इनकार करना जारी रखना चाहता है और इस भ्रम को बनाए रखना चाहता है कि उसने डीएमके सरकार के आशीर्वाद और समर्थन से जो एक 'सैमसंग वर्कर्स कमेटी' बनाई है वही तमिलनाडु प्लांट में मज़दूरों की मुख्य 'प्रतिनिधि' है, जबकि इसमें बहुत कम संख्या में वे मज़दूर हैं जिन्हें या तो धमका कर रखा गया या खरीद लिया गया। सात अक्टूबर को डीएमके के कई मंत्रियों के सामने सैमसंग वर्करों ने इसी फर्ज़ी 'वर्कर्स कमेटी' के साथ 'मेमोरेंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग' पर हस्ताक्षर किए।

जब सीटू नौकरशाहों के द्वारा हड़ताल ख़त्म कराई गई, तो मज़दूरों से कहा गया कि वे मंगलवार 17 अक्टूबर को काम पर वापस लौटेंगे। हालांकि, इसी के साथ, हड़ताल ख़त्म कराने के लिए जो कई वायदे किए गए थे उन्हें तोड़ने की सैमसंग की आगे की मंशा का भी खुलासा हो गया। मैनेजमेंट ने एलान किया कि जब वर्कर वापस काम पर आएंगे, हर वर्कर को व्यक्तिगत रूप से सूचना देनी होगी।

दशकों से स्टालिनवादी सीटू और सीपीएम ने पूंजीवादी सत्ता तंत्र से जुड़ी हुई एक अभिन्न पार्टी के रूप में काम किया है। उसने व्यवस्थित रूप से वर्ग संघर्ष को दबाया है। इसने केंद्र में एक के बाद एक आने वाली दक्षिणपंथी सरकारों को बढ़ावा देना शामिल है जिन्होंने 'निवेशक समर्थक' नीतियों को लागू किया और अमेरिकी साम्राज्यवाद के साथ चीन विरोधी 'रणनीतिक साझेदारी' बनाई।

बार बार, सीटू के तंत्र ने व्यापक मज़दूर वर्ग का प्रतिरोध खड़ा होने और इसकी वजह से सत्ताधारी वर्ग के साथ इसके आरामदायक रिश्ते के बिखर जाने के डर से, मज़दूरों के जुझारू संघर्षों को अलग थलग किया और बेच खाया। सीटू ने श्रीपेरम्बदूर औद्योगिक क्षेत्र में अपने हज़ारों सदस्यों को इस हड़ताल के समर्थन में लामबंद करने से इनकार किया। इस तरह, सीटू ने सैमसंग मज़दूरों के संघर्ष में पड़ोस में ही स्थित सैमसंग की सप्लायर कंपनी एसएच इलेक्ट्रॉनिक्स के मज़दूरों को जोड़ने के लिए कुछ नहीं किया। जबकि एसएच इलेक्ट्रॉनिक्स के वर्कर भी सीटू से संबद्ध हैं और अपने 92 साथियों की बर्ख़ास्तगी के ख़िलाफ़ 120 दिनों से संघर्ष चला रहे हैं।

सैमसंग मज़दूर संघर्ष के साथ सीटू का विश्वासघात उसके दक्षिणपंथी, मज़दूर वर्ग विरोधी इतिहास से मेल खाता है और जिस निर्लज्ज तरीके से इसे अंजाम दिया गया, वह तमिलनाडु की राजनीतिक से जुड़ा हुआ मामला है। इसके बदले सीपीएम बड़े व्यवसायों को बढ़ावा दे रही है और तमिल अस्मितावादी डीएमके की, एक 'प्रगतिशील' पार्टी और 'धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय' के पुरोधा समर्थक के रूप में प्रशंसा कर रही है। क्योंकि डीएमके ने राष्ट्रीय और विधानसभा चुनावों में सीपीएम और इसके लेफ़्ट फ़्रंट पार्टनर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (सीपीआई) को अपने चुनावी गठबंधन में शामिल किया। राज्य सभा में सीपीएम और सीपीआई के छह सांसद हैं, जिनमें दो तिहाई तमिलनाडु से आते हैं।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, डीएमके ने सीपीएम को धमकाया था कि अगर सीटू ने सैमसंग मज़दूर संघर्ष को जल्द समाप्त नहीं किया तो पार्टी चुनावी गठबंधन से उन्हें बाहर कर देगी। क्विंट की ख़बर के अनुसार, डीएमके ने संकेत दिया था कि 'उसकी राजनीतिक रणनीति के लिए यह गठबंधन अनिवार्य नहीं है।'

स्टालिनवादियों की लाख कोशिश के बावजूद, पांच सप्ताह तक चली सैमसंग हड़ताल ने तमिलनाडु के मज़दूरों का ध्यान खींचा, जोकि भारत का सबसे अहम औद्योगिक राज्य भी है।

इसने सत्ताधारी वर्ग में भी काफ़ी चिंता और गुस्सा पैदा किया क्योंकि भारत को एक सस्ता श्रम बाज़ार और चीन के बरक्स अमेरिकी परस्त वैकल्पिक उत्पादन चेन के रूप में प्रचारित करते हुए वैश्विक निवेश को आकर्षित करने की उनकी कोशिशों के प्रति ख़तरा पैदा हो गया था।

इसीलिए, और मज़दूरों के जुझारू उदाहरण बन जाने के डर से, डीएमके सरकार मज़दूरों के साथ इतनी कड़ाई से पेश आई। राष्ट्रीय बीजेपी सरकार का रवैया भी उतना ही शत्रुता वाला था। इसने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से हड़ताल जल्द समाप्त कराने की अपील की। बाद में, हड़ताली कर्मचारियों पर हमला बोलने के लिए डीएमके ने जब बार बार पुलिस का इस्तेमाल किया तो बीजेपी के तमिलनाडु महासचिव प्रोफ़ेसर रामा श्रीनिवासन ने इसकी ख़ूब तारीफ़ की। श्रीनिवासन ने एलान किया, 'तमिलनाडु सरकार की कार्रवाई सही है और सैमसंग के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वाली वामपंथी यूनियनों के ख़िलाफ़ उसे और कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।'

सैमसंग वर्करों का अनुभव, पूरी दुनिया के मज़दूरों जैसा ही है। अधिक से अधिक मुनाफ़ा कमाने को लेकर बड़े उद्योगों के सरकारी शह वाले अभियानों का विरोध करने में मज़दूरों ने बड़ी दृढ़ता और कुर्बानियों का प्रदर्शन किया। लेकिन उनका सामना इस सच्चाई से हुआ कि राष्ट्रवादी, पूंजीवाद परस्त ट्रेड यूनियनें और सत्ता तंत्र से जुड़ी वामपंथी पार्टियां, जिनमें सीपीएम के स्टालिनवादी धोखेबाज़ भी शामिल हैं, ये मिलकर मज़दूर वर्ग को भटकाने के हथियार के रूप में काम करते हैं और पूंजी के हुक़्म को थोपते हैं।

मज़दूर वर्ग दुनिया में सबसे ताक़तवर सामाजिक शक्ति है। इस शक्ति को लामबंद करने के लिए, मज़दूरों को वर्ग संघर्ष के लिए नए संगठन- रैंक एंड फ़ाइल- बनाने ही होंगे और साथ ही सच्ची सामूहिक क्रांतिकारी मज़दूर पार्टी बनानी होगी जो अंतरराष्ट्रीय समाजवाद के कार्यक्रम और भारतीय और वैश्विक पूंजीवाद के ख़िलाफ़ दबी कुचली जनता को लामबंद करने के लिए प्रतिबद्ध हो।

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